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                भारतीय राजनीति एवं सार्वजनिक जीवन ’’धरती पुत्र’’ तथा ’’नेता जी’’ के नाम से सुख्यात् मुलायम सिंह यादव जी का अपना एक अलग व विशिष्ट स्थान तथा महत्त्व है जो उन्होंने अनथक और अनवरत् सद्प्रयासों एवं सतत् सृजनात्मक संघर्ष के बल पर अर्जित किया है। सैद्धान्तिक प्रतिबद्धता व अदम्य साहस उनके जीवन-दर्शन का मुख्य प्रेरक तत्व रहा है। उन्होंने महात्मा गाँधी, डा0 राममनोहर लोहिया, आचार्य नरेन्द्रदेव, लोकनायक जयप्रकाश नारायण की महान समाजवादी परम्परा को लोकबन्धु राजनारायण, एस0एम0 जोशी, मधुलिमये, चैधरी चरण सिंह सदृश विभूतियों के पश्चात् आगे बढ़़ाया और नये इतिहास की रचना की। वे सादगी, सहजता व मानवीय संवेदनायुक्त गुणों के साथ राजनीति को गति देते हुए विगत कई दशकों से देश विशेषकर उत्तर प्रदेश के सियासी फलक पर ध्रुव तारे की भाँति अडिग हैं। उन्होंने डा0 राम मनोहर लोहिया की वैचारिक थाती को अक्षुण्ण बनाए रखा। जिस प्रकार कार्ल माक्र्स के विचारों को और अधिक व्यवहारिक, प्रासंगिक व सामयिक बनाकर ब्लादिमिर इलिच उल्यानोफ़ (लेनिन) ने एशिया के सबसे बड़े भूभाग रूस में मूर्तरूप दिया और बिखराव के दौर में साम्यवादी दल की स्थापना की, उसी प्रकार वैसी ही जीवटता व प्रतिबद्धता प्रदर्शित करते हुए मुलायम सिंह जी ने भारत के सबसे बड़े प्रान्त उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी को पुनर्गठित कर लोहिया की अवधारणाओं को सफलतापूर्वक साकार किया व धरती पर उतारा। लेनिन की तरह नेताजी भी किशोरावस्था के पूर्व मात्र 15 वर्ष की ही उम्र में सार्वजनिक जीवन में आ गए और फिर पीछे मुड़कर सुखमय जीवन की ओर नहीं देखा तथा आम आदमी के दुःख, दर्द, दंश, दलन व दुर्भाग्य के कारणों से लड़ते रहे। दोनों का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ, दोनों ने कर्म व संघर्ष के आधार पर अभूतपूर्व प्रतिष्ठा व सफलता अर्जित की। नेताजी का जन्म इटावा के एक गाँव सैफई में 1939 में हुआ जहाँ प्राथमिक विद्यालय तक उपलब्ध नहीं था। पिता प्रातः स्मरणीय सुघर सिंह पहलवानी पसंद करने वाले कृषक थे। वे दयालु प्रवृत्ति के श्रम-साध्य व्यक्ति थे। जानवरों तक के लिए उनके मन में अपार संवदेना थी, गाय व भैसों का दूध निकालते समय बछड़े के लिए दो थन छोड़ देते थे ताकि पशुओं का पेट भरे और उन्हें उनका हक मिले। माता मूर्ति देवी करुणा की साक्षात् मूर्ति थीं, गरीबों के प्रति विशेष स्नेह व सहानुभूति रखने के कारण पूरा गांव उन्हें अम्मा कहता था। नेताजी को कमजोरों की ताकत बनने और उनके प्रति दया-भाव रखने का गुण माता-पिता से विरासत में मिला। जिस कालखण्ड में उनका जन्म हुआ वह विप्लवकारी व संक्रमण का दौर था। चन्द्रशेखर आजाद व भगत सिंह तथा हिन्दुस्तान रिपब्लिकन सोशलिस्ट आर्मी के क्रान्तिकारी समाजवाद व स्वतंत्रता की अलख जगाते हुए प्राणोत्सर्ग कर चुके थे। द्वितीय विश्व युद्ध प्रारम्भ हो चुका था, कांग्रेस मंत्रिमण्डल से इस्तीफा दे चुकी थी। भारत में राजनीतिक गतिरोध चरम पर था। त्रिपुरी अधिवेशन के घमासान के पश्चात् सुभाषचन्द्र बोस के त्यागपत्र देने से भी वातावरण काफी गर्म हो चुका था। देश स्वतंत्र होने की कगार पर था। मनोवैज्ञानिकों का अभिमत है कि शिशु जिस सामाजिक व राजनैतिक पृष्ठभूमि में उत्पन्न होता है, उसका काफी असर शिशु की मनोवृत्ति व प्रवृत्ति पर पड़ता है। नेताजी के व्यक्तित्व व विचारों पर भी उस समय का प्रभाव पड़ा, वे बाल्यावस्था से ही अपनी जीवटता का परिचय देने लगे। नेताजी में पढ़ने-लिखने की अदम्य इच्छा प्रारम्भ से ही रही। गाँव में प्राइमरी तक की शिक्षा की व्यवस्था नहीं थी। प्रधान महेन्द्र सिंह के घर रात को लालटेन के प्रकाश में थोड़ी-बहुत पढ़ाई होती थी। नेताजी ने वर्णमाला, गिनती, पहाड़ा, गुणा-भाग की बुनियादी जानकारी यहीं से प्राप्त की। इसी बीच सैफई में एक झोंपड़ी में प्राथमिक पाठशाला खुली, ठाकुर सुजान सिंह अध्यापक बनकर आये। प्रधान महेन्द्र सिंह जी ने सभी बच्चों को प्राथमिक पाठशाला में सुचारु रूप से अध्ययन के लिए भेजा। मुलायम सिंह की प्रतिभा व स्मरण शक्ति को देखते हुए अध्यापक महोदय ने उन्हें सीधे तीसरी कक्षा में दाखिला दे दिया।